सोमवार, 3 अगस्त 2009

मुशर्रफ के खिलाफ फैसला

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ मुसीबत में हैं। हालांकि इन दिनों वे यूरोप के विभिन्न देशों की व्याख्यान यात्रा पर हैं; लेकिन पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने मुशर्रफ के आपातकाल लगाए जाने के फैसले को असंवैधानिक ठहरा दिया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी कह रहे हैं कि मुशर्रफ के मामले में नेशनल असेम्बली को फैसला लेना चाहिए। मुशर्रफ के खिलाफ चल रही कार्रवाई से चिंतित सऊदी अरब के पाकिस्तान में राजदूत अब्दुल अजीज बिन इब्राहीम अल गदीर ने पत्रकारों से कहा है कि यदि परवेज मुशर्रफ अनुरोध करेंगे तो सऊदी अरब उन्हें राजनीतिक शरण देने के लिए तैयार है। खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में जब पूर्व राष्ट्रपति के क्रियाकलापों पर सुनवाई हो रही है तब वे वहां नहीं हैं। कहा जा सकता है कि यह इकतरफा कार्रवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने परवेज मुशर्रफ के निवास पर समन्स चस्पा किए हैं; वे विदेश यात्रा पर हैं। वैसे एक टेलीविजन चैनल ने परवेज मुशर्रफ से अदालत के फैसले पर टिप्पणी चाही; उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया है। पाकिस्तान में यह मांग जोर पड़क रही है कि परवेज मुशर्रफ के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए। जाहिर है कि नेशनल असेम्बली या सुप्रीम कोर्ट में परवेज मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह के मामले में कार्रवाई शुरू हुई तो टकराव हो सकता है। दरअसल वर्तमान सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिससे जनता में उसके प्रति भरोसा पैदा हुआ हो। आतंकी हिंसा की घटनाएं बढऩे से लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ी है। भ्रष्टाचार महंगाई से लोगों का जीवन यापन दूभर हो रहा है। मुशर्रफ ने सत्ता में रहते भले ही कुछ भी नहीं किया हो; लेकिन कठोर प्रशासक की इमेज तो बनाई ही थी। वैसे पाकिस्तान की जनता को लोकतांत्रिक सरकार से बहुत उम्मीद थी; लेकिन राजनीतिक दलों के नेताओं ने सेना और इस्लामी कट्टरपंथियों का प्रभाव कम करने के लिए कुछ भी नहीं किया। वे आपस में ही एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते रहे। सेना के कमांडर सत्तारुढ़ नेताओं को आपसी खींचतान में उछले रहने के लिए ही उकसाते रहे। वैसे परवेज मुशर्रफ को उम्मीद है कि वे पाकिस्तान की सत्ता में फिर से लौटेंगे। अपने विदेशी दौरे के दौरान भी पाकिस्तान के अंदरुनी हालात पर नजर रखे हुए हैं। वे ऐसे मौके की तलाश में हैं जब वे सत्ता में लौट सकें। फिलहाल ऐसा होने के आसान दिखाई नहीं दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से आपातकाल लागू किए जाने के परवेज मुशर्रफ के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है उससे इतना तो साफ ही है कि न्यायपालिका, वकील अभी भी गुस्से से भरे हुए हैं। देशद्रोह का मुकदमा चलाए जाने की मांग पर जिस तरह से प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी ने नेशनल असेम्बली में कार्रवाई करने का विचार रखा है। उससे साफ है कि वे यह देख लेना चाहते हैं कि किस राजनीतिक दल के नेता कार्यकर्ता मुशर्रफ के साथ जा सकते हैं और नेशनल असेम्बली में चलने वाली कार्रवाई पर जनता में क्या प्रतिक्रिया होती है। यह तो साफ ही है कि मुस्लिम लीग कायदे आजम परवेज मुशर्रफ के साथ हैं। इसमें दो राय नहीं है कि परवेज मुशर्रफ ने जिस तरह से नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा जमाया और शासन किया, उस सारे मामले पर न्यायिक कार्रवाई होनी चाहिए; ताकि भविष्य में लोकतांत्रिक सरकार को उखाडऩे की कोई हिम्मत नहीं कर सके; लेकिन ऐसा करने से पहले, राजनीतिक दलों में आम सहमति बनाए जाने और सेना के अधिकारों में कटौती किया जाना जरूरी है।
- संपादक

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