आम आदमी को महंगाई से कोई राहत मिल पाएगी इसकी तो दूर-दूर तक संभावना दिखाई नहीं देती। रिजर्व बैंक ने भी अपनी मौद्रिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा है कि महंगाई चार से पांच प्रतिशत तक बढ़ सकती है। हालांकि वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी इस बात को बार-बार दोहरा रहे हैं कि विकास दर को बढ़ाने के साथ महंगाई को काबू में लाने के उपाय कर रहे हैं; लेकिन रिजर्व बैंक ने भी विपक्षी नेताओं की तरह सरकार से पूछ लिया है कि बजट में छोड़े गए घाटे की पूर्ति के लिए वे कौन से उपाय करने वाले हैं। रिजर्व बैंक ने अपनी कर्ज नीति में कोई बदलाव नहीं किया है; जो अपेक्षित ही था। रिजर्व बैंक के गवर्नर सुब्बाराव ने बैंकों के प्रबंधन से एक बार फिर कहा है कि ब्याज दरों में कटौती करके कर्ज को सुलभ बनाया जाए। सरकार और रिजर्व बैंक के दबाव में बैंकों ने कर्ज की ब्याज दरों में तो कमी कर दी है; लेकिन एनपीए के भय से कर्ज उपलब्ध कराने में बेहद चौकस रवैया अपनाया जा रहा है। वैसे रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक समीक्षा में वित्तमंत्री के लिए अनुमानित विकास दर में बढ़ौतरी की है; लेकिन मुद्रास्फीति का भय बरकरार है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि जब तक अर्थव्यवस्था में निश्चित तौर पर सुधार के संकेत नहीं दिखते तब तक रिजर्व बैंक एक समायोजित मौद्रिक नीति को बनाए रखेगी। रिजर्व बैंक ने माना है कि मुद्रास्फीति की दर चार प्रतिशत के बजाय पांच प्रतिशत रहेगी। रिजर्व बैंक रेपो और रिवर्स रेपो दर में कटौती करके मुद्रास्फीति को कम करने की स्थिति में नहीं है; क्योंकि इसके नकारात्मक परिणाम आने का खतरा बढ़ गया है। बाजार में पर्याप्त तरलता के साथ-साथ लोगों को ज्यादा खर्च के लिए उत्प्रेरित करना जरूरी हो गया है। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने आवास और शिक्षा कर्ज में एक प्रतिशत अनुदान की घोषणा इसी वजह से की है ताकि देश में कर्ज लेकर लोगों में मकान ही नहीं वाहन खरीदने की प्रवृत्ति बढ़े; लेकिन बैंक के अधिकारी मकान और वाहन के लिए दिए गए कर्ज के ब्याज, और कर्ज की किश्तों के वापिस जमा न होने से चिंतित हैं। सरकार भले ही दावा कर रही हो कि भारतीय अर्थव्यवस्था संकट से बाहर आ गई है; लेकिन इसके चिन्ह कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। फिर मानसून की गड़बड़ी ने चिंता और बढ़ा दी है। महंगाई तो अपने चरम पर है। सरकार इसे कम करने या स्थिर रखने के उपाय नहीं कर पा रही है। यह दावा जरूर किया जा रहा है कि सरकार ने महंगाई पर काबू पा लिया है; लेकिन जब जेब में रुपए और हाथ में झोला लेकर उपभोक्ता बाजार में रोजमर्रा का सामान खरीदने जाता है तो सब्जी वाले से सब्जी के दाम सुनते ही पसीने छूटने लगते हैं। दरअसल इस महंगाई को बढऩे का मौका छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से मिला है। सरकारी कर्मचारी की जेब पर तो महंगाई का असर नहीं हो रहा है क्योंकि उसे बढ़ा हुआ वेतन सरकार से मिल रहा है; लेकिन गैर सरकारी कर्मचारी और आम आदमी का जीवन दूभर हो रहा है। वैसे सरकार यह कहती रही है कि उसका सारा प्रयास विकास दर को बढ़ाने का रहने वाला है; घाटा और मुद्रास्फीति उसके लिए बड़ी चिंता का कारण नहीं है। मानसून की गड़बड़ी ने हालात गंभीर बना दिए हैं।
-संपादक
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